बेचारे के थे न पाँव न पँख गोद खिलाया काँधे बिठाया नाशुक्रा निकला ये निगोड़ा सर पर चढ़ मेरे ही बोला देखो तो ज़रा ये झूठ मेरा !
हिंदी समय में दिव्या माथुर की रचनाएँ